आर्य और काली छड़ी का रहस्य-5
अध्याय-2
चार रहस्यमई और खतरनाक जगह
भाग-1
★★★
आर्य को होश आया तो उसने खुद को किसी घास फूस से बने कमरे में पाया, जहां उसके आसपास काफी सारे सफेद दाढ़ी वाले सफेद चौगा पहने दिव्य ऋषि मुनियों की तरह लगने वाले लोग खड़े थे। उनमें से कुछ ऐसे लोग भी थे जिनकी दाढ़ी बड़ी थी मगर वह सफेद नहीं थी। जबकि एक ने सफेद चोगे की बजाय सुनहरे रंग का चौगा पहन रखा था। आर्य सभी को देख कर छकपकाया और तुरंत अपनी जगह से खड़ा हो उठा। उसने महसूस किया जिस जगह पर वह लेटा हुआ था वह लकड़ी की बनी कोई चारपाई थी। जिससे खड़े होते वक्त उसमें आवाज भी हुई।
“तुम घबराओ मत....” अचानक एक चमत्कारी सुनहरी सी प्रतीत होती हुई आवाज आई। यह शब्द सुनहरे चौगे वाले ने कहे थे। “तुम अब एक सुरक्षित जगह पर हो। एक ऐसी जगह पर जहां कोई भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता” उन्होंने अपना हाथ आगे कर अंगूठी दिखाई, यह वही अंगूठी थी जो आर्य को विष्णुवर ने दी थी “तुम्हारे पास से हमें जो अंगूठी मिली है उसने हमें सब कुछ बता दिया है। उसका कहना है कि तुम पर अंधेरी परछाइयों ने हमला किया था, इसमें तुम्हारे एक सदस्य की जान चली गई, और तुम्हें बचाने के लिए उन्होंने तुम्हें यहां भेज दिया।”
“क्या अंगूठी... अंगूठी ने आपको बताया..” आर्य हैरानी से बोला। वह इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था। यकीन तो उसे किसी भी बात पर नहीं था।
“हां, कुछ ऐसे मंत्र है जिसके बाद अंगूठी चीजों को बताने लगती है। उनका इस्तेमाल कर हम यहां आश्रम में आने वाले लोगों के पीछे की कहानी जानते हैं। अंगूठी हमें यह भी बताती है कि सामने वाले को हमारे बारे में क्या पता है क्या नहीं। अक्सर हमारी सच्चाई को उसके माता-पिता बताने से कतराते हैं। इसलिए यहां आने वालों को हमें ही हमारे बारे में बताना पड़ता है।”
आर्य शंका और सवालों के साथ अपने इर्द-गिर्द घिरे चेहरों को देखने लगा। वह देख पा रहा था कि उसके आसपास जितने भी ऋषि मुनि जैसे दिखने वाले लोग खड़े हैं, उनकी उम्र बढ़ते से घटते क्रम में थी। वो कुल 8 जने थे। जो उससे बात कर रहा था उसकी उम्र सबसे अधिक थी।
सुनहरे चौगे वाले ने कहा “हम एक ऐसा समुदाय हैं जो आश्रम का नेतृत्व करता है। वह आश्रम जो अंधेरे के शहंशाह को उसके मकसद में कामयाब ना होने देने के लिए उत्तरदाई है। हमारी वजह से ही अंधेरे का शहंशाह अभी तक दुनिया में नहीं आ पाया। हम यहां आश्रम में अंधेरे के शहंशाह को दुनिया में लाने वाली दो छड़ियों की रखवाली करते हैं, और यहां आने वाले तुम जैसे नए लोगों को लड़ना सिखाते हैं। यहां लड़कियां जादू सीखती है, और लड़के तलवारबाजी। मैं यहां इस आश्रम का मुखिया, अचार्य वर्धन हुं, और बाकी सब जिन्हें तुम देख पा रही हो वह यहां के बाकी के आचार्य हैं।”
यह बताते ही आर्य अपने बाबा की उस कहानी को याद करने लगा जो वह उसे अक्सर बताते थे। मतलब यह कहानियां सच्च थी। आश्रम और शैतानों के शहंशाह का वजूद था। उसके बाबा उसे सच्ची कहानी बताते थे। सच में एक ऐसी जगह थी जहां लड़ना और जादू करना सिखाया जाता था। जहां दो छडी़यों की हिफाजत की जा रही है।
बाकी के आचार्यों ने अपनी बारी आते ही अपना परिचय देना शुरू किया। दूसरे नंबर की आचार्य जो आचार्य वर्धन से थोड़ा सा कम उम्र के थे वह बोले, “मैं अचार्य वीरसेन हूं। यहां आश्रम में तलवारबाजी में ही सिखाता हूं।”
उसके बाद इसके आगे के आचार्य बोले “मैं अचार्य अर्जुन हूं, और मैं यहां रसोई घर में बच्चों को खाना बनाना सिखाता हूं।”
बाकी के छह आचार्यों ने भी अपना परिचय दिया। और अपने अपने काम बताए। आखिरी के अचार्य बोले “और मैं आचार्य ज्ञरक हुं, मैं हमेशा आचार्य वर्धन के साथ रहता हूं। और जरूरत के हिसाब से जिस तरह का काम करना पड़ता है, वह करता हूं।” आचार्य ज्ञरक सभी आचार्यों में सबसे युवा अचार्य दिखाई पड़ रहे थे।
सभी के कहने के बाद सुनहरे चौगे वाले आचार्य वर्धन ने कहा “ यहां आश्रम में हम आठ आचार्यों के अलावा तीन और अचार्य हैं, जो महिला अचार्या है। अभी वह सब विद्यार्थियों को संभाल रही है तो यहां नहीं आ पाई। लेकिन तुम जल्द ही उन से भी मुलाकात कर लोगे। जिस आश्रम में तुम आए हो, वह आश्रम, एक बड़े भूभाग पर फैला हुआ है। यहां इसे आश्रम में 400 से ज्यादा विद्यार्थी हैं, जिनमें 235 लड़कियां हैं, 23 गुरु हैं जो इन्हें पढ़ाने का काम करते हैं, 11 अचार्य है जिनमें हम सब आते हैं, फिर इन सब के अलग-अलग कक्ष, जहां यह रहते हैं, भोजनालय, पुस्तकालय, एक छोटा बाजार और न जाने कितना कुछ है। तुम यह समझ सकते हो कि तुम अब एक ऐसी जगह पर आ चुके हो, जो दुनिया से बिल्कुल अलग कट कर रहती है, हर एक सुख सुविधा के साथ। हमारा रहने सहने का तरीका पुराने जमाने के तरीके से मेल खाता है, तो तुम्हें यहां ऐसे भी एहसास होंगे जैसे तुम पुराने समय में आ चुके हो।”
आर्य ने एक नजर उन आचार्यों के पीछे खुले दरवाजे पर डाली। वहां दरवाजे के उस पार उसे बर्फीले मैदानों में बनी कुछ झोपड़ीया दिखाई दे रही थी। आर्य अभी उस और ही देख रहा था कि वहां दरवाजे से एक लड़की अंदर आई और कर्मचारियों से बोली “प्रणाम आचार्य। आपने मुझे यहां बुलाया।”
“हां हिना..” लड़की के बोलते ही आचार्य वर्धन बोले। दरवाजे से आते वक्त आर्य ने लड़की की स्पष्ट छवि नहीं देखी थी। मगर जब आचार्य वर्धन उसकी ओर मुड़े तो उसे लड़की की स्पष्ट छवि नजर आई। वह तकरीबन 17 साल के आसपास वाली गोरी चिट्टी लड़की थी। उसके बाल भूरे रंग के थे और उसने नीले रंग का चोगा पहन रखा था। बाल खुले हुए थे तो वह उसे बार-बार ठीक कर रही थी। आचार्य वर्धन ने उसे हिना नाम लेकर संबोधित किया था। तो इससे आर्य को पता चला कि उसका नाम हिना है।
आचार्य वर्धन बोले “यह लड़का यहां नया आया है। तो इसे पूरा आश्रम दिखा दो, जिन जगहों पर जाना मना है उसके बारे में भी बता देना, और फिर लड़कों के शिविर में इसके लिए कमरे का इंतजाम कर देना। इस लड़के को लेकर इतना काम करने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। ध्यान रहे इसे किसी तरह की तकलीफ नहीं होनी चाहिए।”
लड़की ने अच्छे शिष्य की तरह हां में सर हिलाया “आप फिकर मत कीजिए अचार्य वर्धन। मैं इसे यह सब अच्छे से बता दूंगी।” इसके बाद वह तेजी से आर्य की ओर पलटी और थोड़ी अकड़ भरी आवाज में कहा “चलो आओ मेरे साथ आओ।”
आर्य ने पहले हिना को देखा और फिर अचार्य वर्धन को। आचार्य वर्धन उत्साहित करते हुए बोले “बेटा देख आओ। तुम्हें जल्दी से जल्दी यहां के रहन-सहन की आदतों में ढलना है। जितना घूमोगे फिरोगे उतनी ही जल्दी यहां के हिसाब से रहने की आदत लगेगी।”
आर्य ने असमंजस में फंसे किसी लड़के की तरह अपनी नजरों को ऊपर नीचे किया और फिर लड़की की तरफ देखते हुए उसके साथ चल पड़ा।
★★★
हिना और आर्य बाहर जहां भी चल रहे थे वह बर्फ में बनी एक पगडंडी थी जिसके दोनों ही हो और काफी सारे छात्र इधर-उधर के काम करते दिखाई पड़ रहे थे। हिना तेज तेज चलते हुए बोली “आश्रम में मैं तुम्हें सबसे पहले चार ऐसी जगहों के बारे में बताती हूं जो सबसे ज्यादा रहस्य से भरी हुई है, और उन चारों ही जगहों पर किसी का भी जाना सख्त मना है। सख्त मतलब सख्त...” हिना ने सख्त मतलब सख्त आर्य को लगभग आंखें दिखाते हुए कहा।
आर्य को इतना तेज चलने की आदत नहीं थी। वह उसके पीछे बड़ी मुश्किल से उसकी चाल की बराबरी कर पा रहा था। पगडंडी के जरिए वह लोग आश्रम के बीचो-बीच बने एक पत्थरीली जगह तक पहुंच गए। हिना ने वहां सामने की तरफ इशारा करते हुए कहा “सबसे पहली जगह, हमारे आश्रम के बीचो-बीच बनी हुई यह गुफा। इस गुफा में शैतानों को आजाद करवाने वाली एक छड़ी को रखा गया है, गुफा के अंदर जादू वाले सुरक्षा मंत्र काम करते हैं, जिसकी वजह से अगर कोई एक बार अंदर चला गया तो उसका जिंदा बच पाना लगभग असंभव है। वह जादुई मंत्र खतरनाक है और गुफा में चक्करव्युह का निर्माण करते हुए अंदर जाने वाले को उसमें पूरी तरह से फंसा लेते हैं। तुम समझ गए ना... ” हिना ने वापस आर्य की तरफ देखा और उसे मोटी मोटी आंखों से घुरा “इसलिए यहां जाना सख्त मना है।”
आर्य ने हां भर दी। हिना ने उसका हाथ पकड़ा और तेजी से खींचते हुए दूसरी ओर जाने लगी। अबकी बार आर्य को जबरदस्ती उसके बराबर रहना पड़ रहा था। दोनों ही गुफा से दूर दूसरी पगडंडी के जरिए एक ऐसी जगह पर पहुंच गए जो खंडहर जैसे किले की तरह प्रतीत हो रही थी। वह जगह एक दीवार और लोहे के पुराने गेट से गिरी हुई थी। हिना वहां दीवार के पास और लोहे के गेट के सामने ही खड़ी होकर बोली “यह यहां का शैतानी किला है। इसे शैतानी किला इसलिए कहते हैं क्योंकि यहां सभी शैतानी आत्माओं को कैद करके रखा गया है। इनमें अंधेरी परछाइयां भी आती है, और कुछ ऐसी आत्माए ही भी जो सिर्फ खतरनाक नहीं, बल्कि विनाशकारी भी है। कोई भी शैतानी आत्मा किले से बाहर ना आए, इसलिए यहां भी जादुई मंत्रों का जाल बिछाया गया है। यह जादुई मंत्र ने सिर्फ अंदर से बाहर आने वाले के लिए खतरनाक हैं, बल्कि बाहर से अंदर जाने वाले के लिए भी खतरनाक है। फिर किले के अंदर भी ढेर सारे खतरनाक चक्करवयुह है। कुल मिलाकर कहा जाए तो यहां जाना भी जान गवाना है।” हिना ने फिर से आर्य को मोटी आंखों से देखा “समझे तुम।”
आर्य ने अबकी बार भी हां में सर हिलाया। हिना ने चेहरे पर खुशी झलकाई और आर्य का हाथ पकड़कर आश्रम के पीछे वाली दीवार की ओर जाने लगी। यह वाली पगडंडी लंबी थी। उसने जो गुफा दिखाई थी वह आश्रम के बीचों बीच मौजूद थी, जबकि किला आश्रम में सामने की ओर मुख्य दरवाजे वाली दीवार के कोने पर था। अब वह आश्रम के सामने वाले हिस्से से सीधा पीछे वाले हिस्से की ओर जा रहे थे।
दोनों वहां पहुंचे तो यहां भी एक बड़ा लकड़ी का बना हुआ दरवाजा दिखाई दिया, जो हूबहू उसी दरवाजे जैसा था जो आश्रम के सामने बना हुआ था। हिना आगे बढ़ी और उस दरवाजे को बाहर की ओर धक्का देते हुए अपने कमजोर भुजाओं की जोर आजमाइश से खोल दिया। दरवाजे को खोलते ही सामने दूर तक फेले काले पेडों का कभी ना खत्म होने वाला जंगल दिखाई दिया।
हिना उस जंगल की तरफ अपना हाथ करते हुए बोली “हम इसे काला जंगल कहते हैं। बर्फ की वजह से यहां के सारे पेड़ काले पड़ गए तो यह ऐसा दिखाई देने लग गया है। तुम्हें देखने से ही साफ पता लग रहा होगा कि यह जंगल डरावना है, मगर हकीकत में भी यह डरावना ही है। यहां ऐसे ऐसे जंगली जानवर है जो तुमने कभी अपनी जिंदगी में भी नहीं देखे होंगे। दीवार की वजह से वह जंगली जानवर आश्रम के अंदर नहीं आ पाते, लेकिन अगर कोई इस जंगल में जाएगा तो वह जंगली जानवरों की मन मांगी मुराद पूरी होने जैसा होगा। वह अंदर जाने वाले को पकड़ेंगे, अपने पंजों और बड़े जबड़ों से उसके मास को नाचेंगे, और उसके शरीर की बोटी बोटी खा जाएंगे। यहां तक कि हड्डियों के मिलने की संभावना भी नहीं बचेगी।” हिना फिर से आर्य की तरफ मोटी मोटी आंखों से देखने लगी “समझ गए ना तुम...”
अबकी बार भी आर्य ने हां में सर हिला दिया। उसने अब तक तीन जगहों के बारे में बताया था, और तीनों ही जगह खुद की मौत को दावत देने वाली जगह थी। हिना ने दरवाजे को बंद किया और बंद करते हुए बोली “इन जगहों के बारे में आश्रम के सभी लोगों को जानकारी है, लेकिन इनके अंदर क्या है इसके बारे में कोई नहीं जानता। इसलिए हम जैसे लोग इन्हें रहस्यमई जगह कहते हैं। कभी-कभी इनके बारे में गहराई से जानने की जिज्ञासा होती, जो इंसानी नेचर होने की वजह से होना स्वभाविक है, मगर यहां जो खतरे हैं, वह जिज्ञासा को तुरंत ही खत्म कर देते हैं। तो तुम भी इस बात का ध्यान रखना।”
इस दरवाजे के पास ही सीढ़ियां बनी हुई थी जो ऊपर की ओर दीवार पर जाती थी। हिना उन सीढिओ की तरफ देखते हूए बोली “आओ, अब मैं तुम्हें आखिरी और चौथी जगह के बारे में बता दुं।” वह सिढियों की तरफ चल पड़ी थी। आर्य भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।
दोनों ही सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आए तो आर्य को दीवार का पूरा ढांचा दिखा। दीवार एक बड़ी सड़क जितनी चौड़ी और दो मंजिला घर के बराबर ऊंची थी। दीवार के ऊपर बनी सड़क के दोनों ही किनारों पर छोटी-छोटी 5 इंची इटों की दीवार बनी हुई थी, जो इसलिए थी कि कोई दीवार से नीचे ना गिर जाए।
हिना उस दीवार पर चलते हुए कुछ ज्यादा ही खुश दिखाई दे रही थी। हिना ने इस खुशी में चलते हुए कहा “मुझे यह जगह आश्रम में सबसे ज्यादा पसंद है। यहां दीवार पर आकर वो सुकून मिलता है जो पूरे आश्रम है और कहीं भी नहीं मिलता। यहां एक साथ ठंडी हवाएं और सफेद बर्फीले नजारे देखने को मिलते हैं। रात को तो यहां और भी मजा आता है।” वह चलते-चलते आर्य की ओर मुड़ते हुए बोली, इस दौरान वह उल्टा चल रही थी “ तुम यहां रात को आसमान के चमकते तारे जरूर देखना... फिर तुम्हें भी पता चल जाएगा यह जगह मेरी क्यों सबसे ज्यादा पसंदीदा जगह है।”
हिना दीवार के ऊपर ही चलते चलते आश्रम के दाएं वाले हिस्से के पास आ गई थी। उसने वहां दीवार पर आए मोड़ के पास अपने कदम रोक लिए। रुकने के बाद वह अपनी जेब टटोलने लगी। इस दौरान आर्य भी उसके पास आकर खड़ा हो गया था। हिना ने अपनी जेब से अंगूठी निकाली और उसे ऊपर आसमान की तरफ करते हुए उसके अंदर देखा। वह अंदर से देखते हुए आर्य को बोली “जरा मेरे पास आओ और इस अंगूठी के अंदर देखो।”
आर्य उसके करीब हुआ और अंगूठी के अंदर देखा। उसे अंगूठी के अंदर पूरे आश्रम को घेरने वाला एक लाल रंग का रोशनी का घेरा दिखाई दिया। ऐसा रोशनी का घेरा जो किसी पानी के बुलबुले की तरह था, और पूरा आश्रम उस गोल घेरे के बीचो-बीच केंद्र में बना हुआ था। उस घेरे के ऊपर अजीब सी तरंगे ऊपर उठते हुए बाहर की ओर निकल रही थी, ठीक वैसे जैसे सूरज के अंदर से लावा ऊपर की ओर उठता है।
हिना उस घेरे को देखते हुए बोली “यह वह चीज है जिसकी वजह से हम सब यहां सुरक्षित हैं। आश्रम के आसपास बना सुरक्षा चक्कर। चौथी और आखरी खतरनाक जगह इस सुरक्षा चक्कर के बाहर की पूरी दुनिया है। सुरक्षा चक्र के बाहर बस खतरा ही खतरा है। दुनिया के किसी भी कोने में हम लोग सुरक्षित नहीं। इस सुरक्षा चक्कर से बाहर अंधेरी परछाइयां हमारे लोगों को ढूंढ ढूंढ कर उन्हें दर्दनाक मौत देती है। ऐसी मौत जो कोई भी अपनी जिंदगी में नहीं चाहता।” हिना कहते वक्त थोड़ा भावुक हो उठी “तो तुम्हारे लिए हिदायत है, कभी भी इस सुरक्षा चक्कर के घेरे से बाहर मत जाना। इस सुरक्षा चक्कर से बाहर जाते ही तुम कभी भी किसी भी समय किसी भी दिशा से अंधेरी परछाइयों का शिकार हो सकते हो।” उसने दोबारा आर्य की आंखों में अपनी मोटी आंखों से झांका “और याद रखना.... वह तुम्हें बचने का मौका भी नहीं देंगे..... बिल्कुल भी नहीं।”
★★★
Arshi khan
19-Dec-2021 11:25 PM
Story to achchi ja rhi h, suspence ka ful tadka h romanch bhi soch me dal raha h
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Horror lover
18-Dec-2021 04:40 PM
Ye Hina ki Hina rang lai....!ye h khushrang Hina...
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